जय गुरुदेव ❤️
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।
वेदों में कहा गया है कि माता पिता से बड़ा कोई नहीं, सबसे पहले गुरु भी माता पिता ही होते हैं।
मेरे जीवन में भी यह स्थान मेरे पिता जी का है।
पहली बार ज़िंदगी में फेल होने का स्वाद (कंपार्टमेंट) 10वीं के बोर्ड की परीक्षा में चखा।
केंद्रीय विद्यालय दीपाटोली कैंट रांची के 30 साल के इतिहास में (1979 में के वी दीपाटोली कैंट की स्थापना हुई थी) कोई भी बच्चा मैथ्स की कंपार्टमेंट पास नही कर पाया था। यूं तो मैं पढ़ाई में अच्छा था,पर आर सी ए के लिए क्रिकेट खेलने का भूत मुझे ले डूबा था।
ज्यादातर वक्त क्रिकेट की प्रैक्टिस में ही गुजरता था और शायद इसी वजह से पढ़ाई भी बाधित हुई थी।
320 विद्यार्थियों में से 240 बच्चों की मैथ्स में कंपार्टमेंट आई थी, उसमें से हम भी एक थे।
बोर्ड के रिजल्ट्स आते ही जिनके अच्छे अंक आए थे, उनमें खुशी का माहौल था और हम जैसों की ज़िंदगी मातम में बदल गई थी।
उस वक्त बाबूजी ने कहा,कोई बात नहीं,जो पढ़ेगा वही तो पास या फैल होगा,जो कोशिश करेगा, उसी की जीत और हार होगी।अभी कंपार्टमेंट एग्जाम में बैठने का मौका है, अपनी पूरी मेहनत करो, पास हो जाओगे।
तभी डैडी के दोस्त और हमारे फिजिक्स टीचर पाठक सर का कॉल लैंडलाईन पर आया, उनकी बेटी प्रियंका जो की मेरी सहपाठी थी,उसका भी मैथ्स में कंपार्टमेंट आया था, उन्होंने कहा मुश्किल है बच्चों का पास होना।आज तक तो इस स्कूल के 30 वर्षों के इतिहास में कोई मैथ्स की कंपार्टमेंट और इंग्लिश की कंपार्टमेंट पास नहीं हुआ।
मैंने डरते डरते अपने पिताजी को कहा कि मैं मैथ्स की कंपार्टमेंट पास करूंगा।
रांची में दीपाटोली में मैथ्स के बेस्ट टीचर सी बी सिंह सर से ट्यूशन की बात की गई।
अब मसला यह था की सीबी सिंह सर दीपाटोली से भी आगे रहते थे,तो सैनिक थिएटर रांची से वहां जाने का साधन सिर्फ़ ट्रैक्स या ट्रेकर जीप थी।
फैसला यह हुआ कि रोज़ ट्यूशन के लिए अकेले ट्रैक्स/जीप पकड़ के वहां ट्यूशन पढ़ने अकेले जाया जाएगा।
रोज लगभग 10 किम जाना, ट्यूशन पढ़ना और वापिस आना,लगभग 2-3 महीने यही सिलसिला चला, बहुत मेहनत की, अंततः परीक्षा का दिन आया और सेंटर पढ़ा K.V. हेहल रांची (KV CCL) पाठक सर स्कूल बस में साथ थे, लगभग 6 स्कूल बस गई थी साथ में। लगभग 260 विद्यार्थी थे अलग अलग विषयों में अनुतीर्ण हुए हुऐ, कंपार्टमेंट आई थी जिनकी।
एग्जाम देने गए, मेरे परम मित्र सुमित, जिसकी इंग्लिश में कंपार्टमेंट थी, उसकी सीट मेरे साथ आई।
मैंने जल्दी जल्दी अपना मैथ्स का पेपर सॉल्व किया और सुमित को इंग्लिश के आंसर्स क्वेश्चन पेपर में लिख के बताने लगा, इंविजिलेटर ने 3-4 बार वार्निंग दी,और फिर मेरा मैथ्स का पेपर ले लिए, मैं बेफिक्र था, क्यों की मैं अपना काम कर चुका था,और सुमित का भी काफ़ी पेपर हल करवा दिया था।
ख़ैर एग्जाम दे के बाहर आए, काफ़ी स्टूडेंट्स के मुंह लटके हुए थे,कह रहे थे की पेपर बहुत टफ था, आउट ऑफ सिलेबस था, पाठक सर ने मुझसे पूछा
कैसा हुआ पेपर, मैंने कहा ठीक हुआ, पास हो जाऊंगा, उन्होंने हंसते हुए कहा, पास... हूह ... सिर्फ मेरी बेटी प्रियंका होगी, वैसे भी आज तक कोई पास हुआ है के वी दीपाटोली से मैथ्स और इंग्लिश के कंपार्टमेंट में।और सुना है बड़ा दूसरों को अंग्रेज़ी के पेपर में उत्तर बता रहे थे। पहले ख़ुद तो पास हो जाओ।
ख़ैर परिक्षा परिणाम (रिज़ल्ट) का दिन भी आ गया। पूरे स्कूल में सिर्फ़ मैथ्स में एक ही विद्यार्थी उतीर्ण हुआ था वोह था Abhishek Tiwariz और इंग्लिश में कुछ बच्चे उतीर्ण हुए थे, उनमें से एक था मेरा परम मित्र सुमित।
आज सुमित कहां है,पता नहीं, प्रियंका ने अगले वर्ष परीक्षा उतीर्ण की, आज वो एक बड़े MNC पर अच्छे पद पर कार्यरत है।
मैं आज 5 मास्टर्स और पीजी डिप्लोमा,4 सनातक डिग्री, 5 सर्टिफिकेशन कर के MES में शेफ (खानसामा) के पद पर कार्यरत हूं साथ ही साथ Ph.D कर रहा हूं लीगल स्टडीज में।
यह डैडी/पापा/पिताजी ही हैं, जिन्होंने एलएलबी करने के लिए प्रेरित किया,
एलएलएम करने के लिए प्रेरित किया और अब डॉक्टरेट करने के लिए सपोर्ट और सहयोग करते है ❤️
मेरे पहले गुरु, जिनकी असीम अनुकम्पा और सानिध्य में 5 -6 वर्ष की आयु में काव्य लेखन, लेखनी की शुरुआत हुई, यह बाबूजी ही हैं, जिनकी वजह ने नई ऊर्जा और संभावनाओं को तलाशता रहता हूं,यह बाबूजी ही हैं, जो नित नव सृजन की ओर अग्रसित करते हैं।
आज जो कुछ भी बन पाया हूं, अपने बाबूजी, अपने गुरुजनों की बदौलत ही बन पाया हूं, निर्भीक, निडर, असंभव को संभव करने का साहस, बाबूजी और अपने सभी गुरु जनों की प्रेरणा से संभव करने का प्रयास रहता है।
जीवन संग्राम है, हमें रोज़ परिस्थितियों से लड़ना है, स्वयं से, स्वयं की असीमित संभावनाओं से लड़ना है, यह सिर्फ़ हमें एक गुरु ही सिखा सकता है। गुरु का स्थान कोई भी , कभी भी नहीं ले सकता
ईश्वर सभी गुरु जनों को अच्छी सेहत प्रदान करे, सभी के मान प्रतिष्ठा में वृद्धि करे।
जय गुरुदेव ❤️
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