दोस्तों पोएटिक आत्मा लाया है अब हर हफ़्ते एक लेखक, कवि, शायर का परिचय, इस कड़ी में सबसे पहले शायर जिन्हें हम ले कर आएं हैं, उनके बारे में स्वयं पढ़ें आप :-
आसान नहीं होता दोस्तो किसी के जीवन का आनंद बन जाना और उस से भी मुश्किल होता है एक ऐसा आनंद बन जाना, जो की ना सिर्फ़ एक परिवार का मान सम्मान है, अपितु पूरे पंजाब प्रांत और भारतवर्ष को जिस पे गर्व है।
वह ना सिर्फ़ एक दिये की तरह जलता है, परन्तु वह ख़ुद जल के पूरी दुनियां को सूरज की तरह रौशन करता है। यहां बात हो रही है आज के दौर के सबसे ख़ास शायर की; जो अव्वल फ़ेहरिस्त के शायरों में से एक चमकता नाम है, जिनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है; वह हैं हर दिल अजीज वरूण आनंद साहब । आज के दौर में हर एक नया उभरता लेखक, कवि या शायर अगर किसी शायर की तरह बनना चाहता है तो यकीनन वरूण आनन्द साहब के जैसा बनना चाहता है और बने भी क्यों ना, कठोर परिश्रम, सच्ची लगन, जिंदादिली, ईमानदारी, मोहब्बत और इंसानियत का दूसरा नाम है वरूण आनंद।
भारत के सूबा ए पंजाब के लुधियाना ज़िले से ताल्लुक़ रखने वाले
वरूण आनंद साहब एकदम सहज प्रवृत्ति के हैं। आज देश के लगभग सभी मंचों पे आप अपनी शेर ओ शायरी का जादू चला चुके हैं और आगे भी चलाते रहेंगे।आप जिस भी मंच पर विराजमान होते हैं, उस मंच की शोभा स्वतः ही बढ़ जाती है। शायद ही कोई ऐसा शख़्स होगा,जिसने आपकी गजलें सुनी हो और आपके जादू से अछूता रहा हो। आपकी शायरी का जादू भी कुछ ऐसा है कि आप के चाहने वालों की फ़ेहरिस्त दिन - प्रतिदिन और भी बड़ी होती जा रही है, बॉलीवुड से ले कर देश विदेश में आप के नाम की दीवानगी देखते ही बनती है।
आपका नाम अपने आप में किसी भी मुशायरे और कवि सम्मेलन की सफ़लता की कुंजी है। आपके कलाम और क़लम का जादू भी कुछ ऐसा है कि भीड़ सिर्फ़ आपका नाम सुन के आने लगती है।यह एक दिन की मेहनत का नतीजा नहीं है, इसमें कई वर्षों की तपस्या है, आपकी मेहनत और लगन है,आपकी और आपके परिवार की असंख्य कुर्बानियां शामिल हैं, आपके गुरुजनों, प्रियजनों, चाहने वालों और कई अन्य लोगों की दुआओं का असर है इसमें।
जब दुनियां के अधिकतर लोग आराम फरमाने में व्यस्त रहते हैं तब आप रोज़ी रोटी कमाने के बाद, दिन भर की मरूफियत में अपनी सुखनवरी के लिए जहन में ग़ज़लों, शेर ओ शायरी पर काम कर रहे होते हैं। ख़ाली वक़्त में आप दूसरे शायरों को पढ़ने और लिखने में मसरूफ़ होते हैं। जहां इस दौर में हर एक में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी है, वहीं आप नये शायरों को आगे बढ़ाने और सुखनवरी की बारीकियां समझाने में मसरूफ होते हैं।
आप दूसरे कई लोगों के लिए मिसाल हैं की कैसे औरों को आगे बढ़ाने के साथ साथ ख़ुद भी आगे बढ़ा जा सकता है।
अपने पारिवारिक मूल्यों का, जीवन मूल्यों का पूरी ईमानदारी के साथ निर्वहन करने वाले आप, यक़ीनन आधुनिक युग के शायरों में एक बेहतरीन नाम हैं।
दोस्तों Poetic Atma परिवार Varun anand जी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है,और वरूण आनंद जी के चाहने वालों के लिए उनकी लिखी गजलें पेश करता है। सभी गजलें इंटरनेट और वरूण आनंद जी के फ़ेसबुक वॉल से ढूंढ के इकठ्ठी की गई हैं, ताकि वरूण आनंद जी को चाहने वाले आपकी बेहतरीन गजलों, शेर ओ शायरी को पढ़ सकें।
इसमें वरूण आनंद साहब के शुरुआती दौर की कई रचनाएं हैं,जो उनके दिन प्रतिदिन ऊंचे होते ग्राफ को दर्शाती है।
अगर इस लेख में आपको कोई त्रुटि दिखे तो कृप्या क्षमा करें।
© अभिषेक तिवारी (पोएटिक आत्मा)
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अपनी आंखों में भर कर ले जाने हैं
मुझको उसके आंसू काम में लाने है
देखो हम कोई वेहसी नहीं, दीवाने हैं
तुमसे बटन खुलवाने नहीं लगवाने है
हम तुम एक दूजे की सीढ़ी है जाना
बाकी दुनिया तो सांपों के खाने हैं
पाक़ीज़ा चीजों को पाक़ीज़ा लिखो
मत लिखो उसकी आंखें मयखाने हैं
*
तेरी निगाह-ए-नाज से छूटे हुए दरख़्त
मर जाएं क्या करें बता सूखे हुए दरख़्त
हैरत हैं पेड़ नीम के देने लगे हैं आम
पगला गए हैं आपके चूमे हुए दरख़्त
*
तेरे पीछे होगी दुनिया, पागल बन
क्या बोला मैंने कुछ समझा?.. पागल बन
सेहरा में भी ढूंढ ले दरिया, पागल बन
वरना मर जाएगा प्यासा, पागल बन
आधा दाना आधा पागल, नहीं नहीं नहीं
उसको पाना है तो पूरा पागल बन
दानाई दिखलाने से कुछ हासिल नही
पागल खाना है ये दुनिया, पागल बन
देखें तुझको लोग तो पागल हो जाएँ
इतना उम्दा इतना आला पागल बन
लोगों से डर लगता है? तो घर में बैठ
जिगरा है तो मेरे जैसा पागल बन
*
चाँद, सितारे, फूल, परिंदे ,शाम ,सवेरा एक तरफ़
सारी दुनिया उसका चर्बा उसका चेहरा एक तरफ़
वो लड़ कर भी सो जाए तो उसका माथा चूमूँ मैं
उससे मुहब्बत एक तरफ़ है उससे झगड़ा एक तरफ़
जिस शय पर वो उँगली रख दे उसको वो दिलवानी है
उसकी ख़ुशियाँ सबसे अव्वल सस्ता महंगा एक तरफ़
ज़ख़्मों पर मरहम लगवाओ लेकिन उसके हाथों से
चारा-साज़ी एक तरफ़ है उसका छूना एक तरफ़
सारी दुनिया जो भी बोले सब कुछ शोर-शराबा है
सबका कहना एक तरफ़ है उसका कहना एक तरफ़
उसने सारी दुनिया माँगी मैने उसको माँगा है
उसके सपने एक तरफ़ हैं मेरा सपना एक तरफ़
*
झीलें क्या हैं?
उसकी आँखें
उम्दा क्या है?
उसका चेहरा
ख़ुश्बू क्या है?
उसकी साँसें
खुशियाँ क्या हैं?
उसका होना
तो ग़म क्या है?
उससे जुदाई
सावन क्या है?
उसका रोना
सर्दी क्या है?
उसकी उदासी
गर्मी क्या है?
उसका ग़ुस्सा
और बहारें?
उसका हँसना
मीठा क्या है?
उसकी बातें
कड़वा क्या है?
मेरी बातें
क्या पढ़ना है?
उसका लिक्खा
क्या सुनना है?
उसकी ग़ज़लें
लब की ख़्वाहिश?
उसका माथा
ज़ख़्म की ख़्वाहिश?
उसका छूना
दिल की ख़्वाहिश?
उसको पाना
दुनिया क्या है?
इक जंगल है
और तुम क्या हो?
पेड़ समझ लो
और वो क्या है?
इक राही है
क्या सोचा है?
उस से मुहब्बत
क्या करते हो?
उससे मुहब्बत
इसके अलावा?
उससे मुहब्बत
मतलब पेशा?
उससे मुहब्बत
उससे मुहब्बत, उससे मुहब्बत, उससे मुहब्बत
*
यूँ अपनी प्यास की ख़ुद ही कहानी लिख रहे थे हम
सुलगती रेत पे उँगली से पानी लिख रहे थे हम
मियाँ बस मौत ही सच है वहाँ ये लिख गया कोई
जहाँ पर ज़िंदगानी ज़िंदगानी लिख रहे थे हम
मिले तुझ से तो दुनिया को सुहानी लिख दिया हम ने
वगर्ना कब से उस को बे-मआ'नी लिख रहे थे हम
हमीं पे गिर पड़ी कल रात वो दीवार रो रो कर
कि जिस पे अपने माज़ी की कहानी लिख रहे थे हम
*
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
तुम्हें किस ने कहा है हम बरी तक़दीर वाले हैं
वो जिन को ख़ुद से मतलब है सियासी काम देखें वो
हमारे साथ आएँ जो पराई पैर वाले हैं
वो जिन के पाँव थे आज़ाद पीछे रह गए हैं वो
बहुत आगे निकल आएँ हैं जो ज़ंजीर वाले हैं
हैं खोटी निय्यतें जिन की वो कुछ भी पा नहीं सकते
निशाने क्या लगें उन के जो टेढ़े तीर वाले हैं
तुम्हारी यादें पत्थर बाज़ियाँ करती हैं सीने में
हमारे हाल भी अब हू-ब-हू कश्मीर वाले हैं
*
ये शोख़ियाँ ये जवानी कहाँ से लाएँ हम
तुम्हारे हुस्न का सानी कहाँ से लाएँ हम
मोहब्बतें वो पुरानी कहाँ से लाएँ हम
रुकी नदी में रवानी कहाँ से लाएँ हम
हमारी आँख है पैवस्त एक सहरा में
अब ऐसी आँख में पानी कहाँ से लाएँ हम
हर एक लफ़्ज़ के मा'नी तलाशते हो तुम
हर एक लफ़्ज़ का मा'नी कहाँ से लाएँ हम
चलो बता दें ज़माने को अपने बारे में
कि रोज़ झूटी कहानी कहाँ से लाएँ हम
*
ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है
वक़ार ख़ुद नहीं बनता बनाया जाता है
कभी कभी जो परिंदे भी अन-सुना कर दें
तो हाल दिल का शजर को सुनाया जाता है
हमारी प्यास को ज़ंजीर बाँधी जाती है
तुम्हारे वास्ते दरिया बहाया जाता है
नवाज़ता है वो जब भी अज़ीज़ों को अपने
तो सब से बा'द में हम को बुलाया जाता है
हमीं तलाश के देते हैं रास्ता सब को
हमीं को बा'द में रास्ता दिखाया जाता है
*
मरहम के नहीं हैं ये तरफ़-दार नमक के
निकले हैं मिरे ज़ख़्म तलबगार नमक के
आया कोई सैलाब कहानी में अचानक
और घुल गए पानी में वो किरदार नमक के
दोनों ही किनारों पे थी बीमारों की मज्लिस
इस पार थे मीठे के तो उस पार नमक के
उस ने ही दिए ज़ख़्म ये गर्दन पे हमारी
फिर उस ने ही पहनाए हमें हार नमक के
कहती थी ग़ज़ल मुझ को है मरहम की ज़रूरत
और देते रहे सब उसे अशआ'र नमक के
जिस सम्त मिला करती थीं ज़ख़्मों की दवाएँ
सुनते हैं कि अब हैं वहाँ बाज़ार नमक के
*
©वरुण आनंद