Tuesday, September 29, 2020

ना निराश ना हताश, सुखी जीवन का प्रयास

 बहुत दुख देता है सपनों का टूटना और उस से भी बुरा होता है सपनों के साथ - साथ अपने हौसले का टूटना और अपनों का हम से रूठना और उनका हमसे साथ छूटना। कुछ लोगों के सपने जब टूट जाते हैं, उनके अपने उनसे रूठ जाते हैं और उनके हाथ और साथ छूट जाते हैं तो वो अपनी ज़िन्दगी से दूर चले जाते हैं। ज़िन्दगी में उम्मीदों का मरना बहुत ही बुरा होता है, वो वक़्त जहां आप अकेले होते हैं और बार बार यादों के महासागर में गोते लगाते हैं।

आपके हृदय में और मन मस्तिष्क में चलता हुआ अन्तर्द्वन्द आपको चैन से जीने नहीं देता और चैन से मरने भी तो नहीं देता है। परिस्थितियों से हार के, विवश होने वालों को उनकी मंज़िल कभी नहीं मिलती, उनको मिलती है तो सिर्फ़ अकाल मृत्यु और जो अभी विफलताओं, असफलताओं से  निराशा के वक़्त अपनी भावनाओं पे काबू कर लेते हैं, उनकी विजयश्री तो फ़िर निश्चित है।

बहुत ज़रूरी है दुनियां में अपनी भावनाओं पे काबू करना, अपनी इन्द्रियों को जीतना। अपनी खुशियों की चाभी  को दूसरों के हाथों में सौंपने वाले सदैव निराश हताश होते हैं।कभी - कभी आपको अपने स्वप्नों का बलिदान देना पड़ता है क्योंकि सृष्टि ने, आपके लिए शायद उस से भी बड़े स्वप्न देखें हैं। वैसे भी कहते हैं मन का हो तो भला और मन का ना हो तो बहुत ही भला।

अपनी जीत अपनी हार, अपनी खुशियां अपने दुख, अपने जीवन का विष और अपने जीवन का अमृत सब आपके ही हाथ है। ज्ञानी मनुष्य खुशियों की अनुभूति अपने अंतर्मन में अवस्थित ब्रह्मांड में ही ढूंढ़ लेता है, उसको भौतिक सुख की आवशयकता नहीं होती है। वहीं अज्ञानी मृग के समान खुशियों और सुख की कस्तूरी अपने अंदर ढूंढने की बजाय बाहरी दुनियां में ढूंढ़ता है।

औरों के द्वारा निर्धारित सुख - दुःख, सफलता - असफलता के पैमाने के अनुसार वो सिर्फ़ और सिर्फ़ दुखों को ही प्राप्त करता है।

विजय और हार सिर्फ़ एक मनःस्थिति होती है।

आप जो भी कार्य कर  रहे हैं अगर उसको करने से किसी को भी कोई कष्ट होता है तो आप कभी भी सुख को प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आपको सुख भी मिल गया तो वह क्षणभंगुर ही होगा, वहीं सतत् परिश्रम से, कठिन परिश्रम से प्राप्त सुख आपके जीवन में आपको जो सुख और खुशियां देता है, उसकी अनुभूति में आप का जीवन कब व्यतीत हो जाता है आपको पता ही नहीं चलता।

दूसरों को ख़ुश देखना और दुनियां को ख़ुश रखना ही आपके जीवन का आधार होना चाहिए।

युग- काल खंड और ये दुनियां सिर्फ़ उसी को याद रखती है जो त्याग करते हैं। अपनी खुशियों का त्याग, अपने धन का त्याग, अपने क्रोध और अहंकार का त्याग, अपने जीवन का त्याग।

त्याग ही जीवन का आधार होना चाहिए,जो ख़ुशी किसी मायूस, ज़रूरत मंद, अपने या पराए के चेहरे पे हंसी लाने से मिलती है वो ख़ुशी शायद आपको किसी और कार्य करने से नहीं मिल सकती।

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