Sunday, August 2, 2020

नपुंसक

********************नपुंसक************************

सड़क के बीचो बीच भीड़ लगी हुई थी, जोर से आवाज आ रही थी मारो मारो और जोर से मारो और  मैं ट्रैफिक जाम में फंसी अपनी कार से उतर के कब इस भीड़ का हिस्सा बन गया, कब इस भीड़ में घुल मिल गया मुझे भी पता नहीं चला।
मेरे कदम उस भीड़ के घेरे को चीरते हुए आगे बढ़ने लगे, तमाशबीन लोगों की भीड़ से मारो मारो की आवाज और तेज होने लगी, मैं करीब पहुंचा तो देखा एक आदमी अपने बगल में दो रोटी छुपाए रो रहा है ,भीड़ उसे मार रही है वह बार बार सिर्फ इतना ही कह रहा था कि साहब  मैं चोर नहीं हूं लॉकडाउन में  काम धंधा चौपट हो गया है,भूख से घर में  मेरे माता पिता, पत्नी ,छोटी बेटी मर चुकी है उनकी लाशें सड़ रही हैं, मैं चोर नहीं हूं साहब अपनी बड़ी बेटी का भूख से तड़पता और मरना मुझसे देखा नहीं जा रहा था और आज लॉकडाउन खुला था और मैंने घर से बाहर  आकर ढाबे के कूड़ेदान से दो रोटी ही उठाई थी कि यह लोग मुझे चोर चोर कह कर मार रहे हैं, लॉक डाउन में काम धंधा सब तबाह हो गया साहब मैं चोर नहीं हूं साहब, बड़ी उम्मीद से उसने मेरी ओर देखा कि तभी भीड़ में से किसी शख्स ने एक पत्थर जोर से उसके सिर पर दे मारा और उसकी आवाज एक चीख में बदल कर गुम हो गई। तभी मैंने देखा कि उसकी आत्मा भीड़ को देखकर अठहास कर रही है, कह रही है नपुंसक हो तुम सब, भ्रष्ट नेता, पुलिसकर्मी, सरकारी अधिकारी और कर्मचारीयों, गुंडों, लाखों करोड़ों के ठगों  के सामने तो तुम्हारी आवाज नहीं निकलती ।
पर गरीब, मासूम, असहाय, लाचार लोगों के सामने तुम शेर बन जाते हो। किसी लड़की का बलात्कार होते देखते हो या दिनदहाड़े लूटपाट तब तो खामोश हो जाते हो और आज सिर्फ दो रोटी के लिए तुम सब ने मेरा कत्ल कर दिया। और मैं खामोश वापस अपनी कार की ओर मुड़ता हुआ यही सोच रहा था कि मैं भी एक नपुंसक हूं जो एक गरीब लाचार मासूम की जान नहीं बचा पाया, और यह दो रोटी शायद वह नहीं उठाता तो कुछ दिन और शायद जिंदा रह जाता, आज दो रोटी की वजह से उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
और मेरी आंखो से बार बार आंसू निकल रहे थे, अपने असफल होने के कारण, सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण और भीड़- तंत्र के कारण।
©Abhishekism