Sunday, November 19, 2023

Salman Chishty: A Man Beyond Borders



In a world often marked by division and strife, Salman Chishty stands as a beacon of unity, compassion, and cross-cultural understanding. His life's journey is a testament to the transformative power of bridging borders, fostering connections, and promoting harmony.



Born with a deep-rooted commitment to interfaith dialogue, Salman Chishty has dedicated his life to fostering a sense of oneness among diverse communities. As a spiritual leader and advocate for peace, he has tirelessly worked to break down the walls that separate us, emphasizing the shared values that bind humanity together.



Chishty's efforts extend beyond geographical boundaries, transcending the limitations of nationality and ethnicity. His initiatives have reached across continents, bringing people from different walks of life together in the pursuit of common goals. Whether through educational programs, humanitarian projects, or spiritual gatherings, Chishty has consistently demonstrated that understanding and acceptance can flourish when we look beyond borders.



One of Chishty's remarkable qualities is his ability to build bridges between people of various faiths. Through open dialogue and mutual respect, he has created spaces where individuals from diverse religious backgrounds can come together to celebrate their shared humanity. In a world often plagued by religious discord, Chishty's approach serves as a powerful reminder that compassion knows no religious boundaries.


Beyond his role as a spiritual guide, Salman Chishty has actively engaged in humanitarian endeavors, addressing pressing issues such as poverty, education, and healthcare. His commitment to improving the lives of those in need underscores his belief in the interconnectedness of all people, regardless of where they call home.



In an era where divisive rhetoric can dominate public discourse, Salman Chishty stands out as a living example of the positive impact one individual can have on the world. His unwavering dedication to building bridges and fostering understanding serves as an inspiration for others to follow, reminding us all that we are, indeed, one global family.


In essence, Salman Chishty is not just a man; he is a catalyst for positive change, a visionary who envisions a world where borders are transcended, and unity prevails. Through his tireless efforts, he has become a symbol of hope, illustrating that by reaching across borders, we can create a world where compassion triumphs over conflict, and where the common threads of humanity bind us all together.

Monday, September 11, 2023

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Thursday, July 14, 2022

Project Chocolate By Chef Abhishek Tiwari

 I was not able to sleep since last past 2 years,as I am having only one dream,i.e to make chocolates,but not an ordinary one.

The kind of chocolate I want to make is the one,which will bring accolades to my country ,my department ,my community and my family.

Making chocolate is not a rocket science,but making a perfect chocolate,which is gluten free,rich in taste and a perfect one,needs proper practice and for this you have to learn about different types of chocolates and making a perfect ganache.


Monday, April 4, 2022

रियल फेथ ट्रस्ट द्वारा चित्र कला प्रतियोगिता का आयोजन

 रियल फेथ ट्रस्ट की ओर से समाज के निम्न वर्ग के बच्चों के लिए एक चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन रियल फेथ ट्रस्ट के कार्यालय पोसंगीपुर में करवाया गया । इस चित्रकला प्रतियोगिता में  करीब 50 बच्चे आस पड़ोस के स्लम बस्तियों से आए थे,जिनकी आयु लगभग 5 वर्ष से 15 वर्ष के मध्य थी। सभी बच्चों ने पूर्ण उत्साह के साथ इस प्रतियोगिता में भाग लिया और अपनी चित्रकारी से सभी का मन मोह लिया। समाज को  भिन्न भिन्न विषयों पर संदेश देती चित्रकारी को सभी ने बहुत सराहा इसके साथ ही रियल फेथ ट्रस्ट द्वार सभी बच्चों को अपनाया (एडॉप्ट किया ) गया और इन शोषित, पीड़ित, वंचित, निम्न वर्ग के बच्चों की सभी जरूरतों को पूर्ण करने का आश्वासन भी दिया।  हर बच्चे की अलग अलग इच्छाओं की पूर्ति के लिए उनसे उनकी इच्छाएं, जरूरतें , आकांक्षा और अभिलाषाएं पूछी गई।

किसी बच्चे ने कंप्यूटर सीखने की इच्छा जताई तो किसी ने इंग्लिश सीखने की,कुछ बच्चे आत्म रक्षा के लिए मार्शल आर्ट, कुंग फू कराटे सीखना चाहते हैं तो वहीं कुछ बच्चे जो पढ़ाई (शिक्षा) में कमजोर हैं, तो उन्होंने ट्यूशन पढ़ने की ईच्छा जताई। कई  बच्चे अलग अलग प्रकार की विधाएं , कला , कौशल (स्किल्स) सीखना चाहते हैं, उन्हें वो विधाएं सीखने के लिए रियल फेथ ट्रस्ट द्वारा आश्वासन दिया गया। इस प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के रुप में श्री गुरविंदर सिंह (चंद्र विहार ) ने शिरकत की  आपने बच्चों के लिए स्टेशनरी का प्रबन्ध किया , वहीं विशिष्ट अतिथि टिंकू सोलंकी जी ने बच्चों के लिए खान पान की पूर्ण व्यवस्था करी। वहीं अति विशिष्ट अतिथि उर्मिला चावला जी ने कहा कि मैं भविष्य में भी  रियल फेथ ट्रस्ट के आयोजनों में पूर्ण रूप से सहयोग दूंगी और ट्रस्ट द्वारा गोद लिए गए बच्चों की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए सदैव प्रयासरत रहूंगी। साथ ही साथ बच्चों के खान पान की जब जैसी आवश्यकता होगी , आपने उसकी देख रेख का भी पूर्ण आश्वासन ट्रस्ट को प्रदान किया।

रियल फेथ ट्रस्ट की  संस्थापिका नीलम सैनी, इंदर ढिल्लों,परम संधू, पिंकी वर्मा गीता अरोड़ा की सहभागिता एवं सहयोग से यह  अयोजन सुचारू रूप से आयोजित करवाया गया और सफ़ल भी हुआ।

सभी बच्चों की चेहरे की मुस्कुराहट ने कार्यक्रम की सफ़लता को प्रमाणित किया।

रियल फेथ ट्रस्ट का उद्देश समाज के विभिन्न वर्गों के बच्चों, महिलाओं, पुरुषों के हितों की रक्षा कर के एक अच्छा समाज और देश बनाना है, ट्रस्ट भविष्य में भी ऐसे ही कार्यरत रहेगा।

© अभिषेक तिवारी , प्रेस सचिव ( रियल फेथ ट्रस्ट)

एस आर हरनोट के निर्मल वर्मा

S R Harnot के निर्मल वर्मा

कई लेखकों, कथाकारों, बुद्धिजीवियों, संपादकों और पत्रकारों ने भारतीय आधुनिक साहित्य के सम्मानित मूर्धन्य लेखक स्वर्गीय श्री निर्मल वर्मा जी के बारे में काफ़ी कुछ लिखा।

उनकी कई पुस्तकों, किताबों, कहानियों, निबंधों, यात्रा संस्मरणों, लेखों, डायरी के अंश, नाटक, संभाषण, साक्षात्कार, पत्रों, संचयन के बारे में काफ़ी कुछ लिखा गया, कभी आलोचना, कभी समालोचना तो कभी बांधे गए तारीफों के पुल, बांधे भी क्यों ना जाते; क्यों की निर्मल वर्मा को जिसने भी पढ़ा, सुना, जाना, वही निर्मल वर्मा का हो गया,या यूं कहो निर्मल वर्मा का दीवाना बन गया।

मैं अनभिज्ञ था निर्मल वर्मा से, मुझे नहीं पता था कौन है निर्मल वर्मा, कहां से है निर्मल वर्मा, कैसे हैं निर्मल वर्मा और क्या है उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियां ! मुझे तो यह भी नहीं पता था की आधुनिक बोध लाने वाले कहानीकारों, कथाकारों में निर्मल वर्मा अग्रणी हैं। अज्ञेय और निर्मल वर्मा ही ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संस्कृतियों पर गहनता, सघनता और व्यापकता से अपने अनुभवों के द्वारा अंतर्द्वंद को व्यक्त किया।

कौन से पुरस्कार और क्या ही थे पुरस्कार , निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व के आगे ; साहित्य अकादमी सम्मान, मूर्तिदेवी पुरस्कार, ज्ञान पीठ सम्मान, पद्म भूषण सम्मान प्राप्त लेखक को दुनियां में किसी सम्मान की आवश्यकता नहीं थी, परंतु फिर भी सम्मान समय समय पर आपके कदम चूमते ही रहे।

हरबर्ट विला और लाल टीन की छत का, भज्जी हाउस का संबंध जितना पुराना है, शायद उतना ही पुराना मेरा संबंध है एस आर हरनोट से, " जी" ना मैंने निर्मल वर्मा के नाम के आगे लगाया और ना ही हरनोट के नाम के आगे लगाया है इस लेख में ;क्यों की जो अपना है, अपना हिस्सा है, अपनी आत्मा का एक अंश है, उसमें और ख़ुद में ना कोई तकल्लुफ है और जहमत उठाने की भी कोई आवश्यकता नहीं है, क्यों की, इनके लिए दिल की अथाह गहराइयों से शत शत नमन और चरण वंदना है और हो भी क्यों ना !

पहाड़ों की विषमताओं को, जीवन को, दुश्वारियों, मुश्किलों को जिस सहजता के साथ यह दोनों सहजते हैं, जीते हैं, शायद ही कोई और लेखक उसे अपने शब्दों के माध्यम से पिरो पाता, जीता होगा या बांध पाता होगा।

निर्मल वर्मा तो अमर हो गए पर अपना अंश एस आर हरनोट में छोड़ गए, छोड़ते भी क्यों ना, हर द्रोणाचार्य और श्री कृष्ण को एक अर्जुन चाहिए होता है और निर्मल वर्मा के हिमाचल का वह अर्जुन कोई और नहीं श्री एस आर हरनोट हैं जो उनकी विरासत को आगे ले कर अकेला नहीं बढ़ रहा, अपितु अपने साथ 70 साहित्यकारों का भार अपने कंधो पर ले कर चल रहा है। निर्मल वर्मा को हर पल, हर क्षण अपने अंदर जीवित रख के आने वाली कई पीढ़ियों के लिए, निर्मल वर्मा के चरणों के हजारों धूल के कण पैदा कर रहा है। सरकार को, भाषा विभागों को निर्मल वर्मा अपने लगते हैं पर सिर्फ़ एक या दो तिथियों में, पर एस आर हरनोट अपने हर दिन में 86,400 बार, हर एक क्षण निर्मल वर्मा को जीते हैं, वो भी बिना किसी लालसा या परिणाम के, वो जीते हैं बाबा भलखू को, वो जीते हैं हिमाचल को, उसके साहित्य सेवकों को और साहित्य को। तभी तो उम्र के जिस पड़ाव पर लोग रिटायरमेंट ले के आराम करते हैं, उस वक्त हरनोट साहब निर्मल वर्मा स्मृति यात्रा निकालते हैं और वह भी एक दिन नहीं, बल्कि उसकी तैयारी महीनों से शुरु कर देते हैं। एक साल बीतता है तो दूसरे साल की तैयारियां शुरु कर देते हैं और फ़िर लग जाते हैं पैदा करने निर्मल वर्मा के पैरों के निशान से धूल उठा के, चरण रज उठा के बनाने एक नया निर्मल वर्मा के पैरों के धूल का कण जो एक दिन निर्मल वर्मा के सपनों का साहित्यकार बने और उस मशाल को आगे बढ़ाने में लग जाए जिसे निर्मल वर्मा स्वयं श्री एस आर हरनोट को पकड़ाकर गए हैं।

जिस दुनियां में अपनी संतान, अपने माता पिता के जन्म दिवस को भूल जाती हैं, श्राद भूल जाती हैं, वहीं एस आर हरनोट नहीं भूलते एक भी साहित्यिक तिथि और गतिविधि। ज्ञान पीठ सम्मान, साहित्य अकादमी सम्मान और पद्म सम्मान की लालसा नहीं है हरनोट साहब को उनको बस लालसा है हिमाचल के साहित्यकारों को विश्व में एक सम्मान और पहचान दिलाने की जो प्राप्त किया था चेकोस्लोवाकिया में, यूरोप में निर्मल वर्मा ने, जिसने मिटा दिया था पहाड़ों का मैदानों से भेद और जो खींच लाता है सभी को पुनः पहाड़ों पर।

जो खींच लाता है सभी को चीड़ और देवदारों के बीच काया की तरह रिज पर, मॉल रोड़ पर और शिमला में। जहां हर कोई आ कर बन जाता है निर्मल वर्मा और महसूस करता है पहाड़ी जीवन की सरसता, मधुरता, विषमता को, फिर भी खुद को प्रसन्न और आनंदित पाता है, क्यों की वो बन जाता है एस आर हरनोट का निर्मल वर्मा, कुल राजीव पंत का निर्मल वर्मा, विधा निधि छाबड़ा का निर्मल वर्मा, भारती कुठियाला का निर्मल वर्मा, डॉ देव कन्या ठाकुर का, स्नेह नेगी का , दीप्ति सारस्वत का, हिमालय साहित्य सांस्कृतिक एवम पर्यावरण मंच का निर्मल वर्मा और डॉ देवेंद्र गुप्ता का निर्मल वर्मा या यूं कहो बन जाता है इस टूटे फूटे लेख को लिखने वाले एक गुमनाम लेखक अभिषेक तिवारी का निर्मल वर्मा।

निर्मल वर्मा बन जाते हैं उनके सभी पाठक और परिंदे (1959) बन के बन जाते हैं नई कहनी आंदोलन के अग्रदूत। एक ऐसा साहित्यकार जो साहित्य की लगभग हर एक विधा में खरा उतरा क्यों की निर्मल वर्मा दुनियां में सिर्फ़ एक ही हुआ है और अब पैदा होंगे निर्मल वर्मा के चरण रज से उत्पन्न संताने जो साहित्य, मानवता और समाज में हिमाचल प्रदेश का नाम, देश का नाम सारी दुनिया में गर्व से ऊंचा करेंगे और कहेंगे हम हैं एस आर हरनोट के निर्मल वर्मा

© अभिषेक तिवारी

Tuesday, December 28, 2021

One Life..One Aim... Humanity

Be proud of your Wounds

Be proud of your Wounds...

For every wound there is a scar, and every scar is having a story...

Be your own story...be your own book...

Be the writer of your Story

©Abhishekism

Saturday, July 24, 2021

कंपार्टमेंट एग्जाम

 जय गुरुदेव ❤️

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।


 

अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।


वेदों में कहा गया है कि माता पिता से बड़ा कोई नहीं, सबसे पहले गुरु भी माता पिता ही होते हैं।

मेरे जीवन में भी यह स्थान मेरे पिता जी का है।

पहली बार ज़िंदगी में फेल होने का स्वाद (कंपार्टमेंट) 10वीं के बोर्ड की परीक्षा में चखा।

केंद्रीय विद्यालय दीपाटोली कैंट रांची के 30 साल के इतिहास में (1979 में के वी दीपाटोली कैंट की स्थापना हुई थी) कोई भी बच्चा मैथ्स की कंपार्टमेंट पास नही कर पाया था। यूं तो मैं पढ़ाई में अच्छा था,पर आर सी ए के लिए क्रिकेट खेलने का भूत मुझे ले डूबा था।

ज्यादातर वक्त क्रिकेट की प्रैक्टिस में ही गुजरता था और शायद इसी वजह से पढ़ाई भी बाधित हुई थी।

320 विद्यार्थियों में से 240 बच्चों की मैथ्स में कंपार्टमेंट आई थी, उसमें से हम भी एक थे।

बोर्ड के रिजल्ट्स आते ही जिनके अच्छे अंक आए थे, उनमें खुशी का माहौल था और हम जैसों की ज़िंदगी मातम में बदल गई थी।

उस वक्त बाबूजी ने कहा,कोई बात नहीं,जो पढ़ेगा वही तो पास या फैल होगा,जो कोशिश करेगा, उसी की जीत और हार होगी।अभी कंपार्टमेंट एग्जाम में बैठने का मौका है, अपनी पूरी मेहनत करो, पास हो जाओगे।

तभी डैडी के दोस्त और हमारे फिजिक्स टीचर पाठक सर का कॉल लैंडलाईन पर आया, उनकी बेटी प्रियंका जो की मेरी सहपाठी थी,उसका भी मैथ्स में कंपार्टमेंट आया था, उन्होंने कहा मुश्किल है बच्चों का पास होना।आज तक तो इस स्कूल के 30 वर्षों के इतिहास में कोई मैथ्स की कंपार्टमेंट और इंग्लिश की कंपार्टमेंट पास नहीं हुआ।

मैंने डरते डरते अपने पिताजी को कहा कि मैं मैथ्स की कंपार्टमेंट पास करूंगा।

रांची में दीपाटोली में मैथ्स के बेस्ट टीचर सी बी सिंह सर से ट्यूशन की बात की गई।

अब मसला यह था की सीबी सिंह सर दीपाटोली से भी आगे रहते थे,तो सैनिक थिएटर रांची से वहां जाने का साधन सिर्फ़ ट्रैक्स या ट्रेकर जीप थी।

फैसला यह हुआ कि रोज़ ट्यूशन के लिए अकेले ट्रैक्स/जीप पकड़ के वहां ट्यूशन पढ़ने अकेले जाया जाएगा।

रोज लगभग 10 किम जाना, ट्यूशन पढ़ना और वापिस आना,लगभग 2-3 महीने यही सिलसिला चला, बहुत मेहनत की, अंततः परीक्षा का दिन आया और सेंटर पढ़ा K.V. हेहल रांची (KV CCL) पाठक सर स्कूल बस में साथ थे, लगभग 6 स्कूल बस गई थी साथ में। लगभग 260 विद्यार्थी थे अलग अलग विषयों में अनुतीर्ण हुए हुऐ, कंपार्टमेंट आई थी जिनकी।

एग्जाम देने गए, मेरे परम मित्र सुमित, जिसकी इंग्लिश में कंपार्टमेंट थी, उसकी सीट मेरे साथ आई।

मैंने जल्दी जल्दी अपना मैथ्स का पेपर सॉल्व किया और सुमित को इंग्लिश के आंसर्स क्वेश्चन पेपर में लिख के बताने लगा, इंविजिलेटर ने 3-4 बार वार्निंग दी,और फिर मेरा मैथ्स का पेपर ले लिए, मैं बेफिक्र था, क्यों की मैं अपना काम कर चुका था,और सुमित का भी काफ़ी पेपर हल करवा दिया था।

ख़ैर एग्जाम दे के बाहर आए, काफ़ी स्टूडेंट्स के मुंह लटके हुए थे,कह रहे थे की पेपर बहुत टफ था, आउट ऑफ सिलेबस था, पाठक सर ने मुझसे पूछा

कैसा हुआ पेपर, मैंने कहा ठीक हुआ, पास हो जाऊंगा, उन्होंने हंसते हुए कहा, पास... हूह ... सिर्फ मेरी बेटी प्रियंका होगी, वैसे भी आज तक कोई पास हुआ है के वी दीपाटोली से मैथ्स और इंग्लिश के कंपार्टमेंट में।और सुना है बड़ा दूसरों को अंग्रेज़ी के पेपर में उत्तर बता रहे थे। पहले ख़ुद तो पास हो जाओ।

ख़ैर परिक्षा परिणाम (रिज़ल्ट) का दिन भी आ गया। पूरे स्कूल में सिर्फ़ मैथ्स में एक ही विद्यार्थी उतीर्ण हुआ था वोह था Abhishek Tiwariz और इंग्लिश में कुछ बच्चे उतीर्ण हुए थे, उनमें से एक था मेरा परम मित्र सुमित।

आज सुमित कहां है,पता नहीं, प्रियंका ने अगले वर्ष परीक्षा उतीर्ण की, आज वो एक बड़े MNC पर अच्छे पद पर कार्यरत है।

मैं आज 5 मास्टर्स और पीजी डिप्लोमा,4 सनातक डिग्री, 5 सर्टिफिकेशन कर के MES में शेफ (खानसामा) के पद पर कार्यरत हूं साथ ही साथ Ph.D कर रहा हूं लीगल स्टडीज में।

यह डैडी/पापा/पिताजी ही हैं, जिन्होंने एलएलबी करने के लिए प्रेरित किया,

एलएलएम करने के लिए प्रेरित किया और अब डॉक्टरेट करने के लिए सपोर्ट और सहयोग करते है ❤️

मेरे पहले गुरु, जिनकी असीम अनुकम्पा और सानिध्य में 5 -6 वर्ष की आयु में काव्य लेखन, लेखनी की शुरुआत हुई, यह बाबूजी ही हैं, जिनकी वजह ने नई ऊर्जा और संभावनाओं को तलाशता रहता हूं,यह बाबूजी ही हैं, जो नित नव सृजन की ओर अग्रसित करते हैं।

आज जो कुछ भी बन पाया हूं, अपने बाबूजी, अपने गुरुजनों की बदौलत ही बन पाया हूं, निर्भीक, निडर, असंभव को संभव करने का साहस, बाबूजी और अपने सभी गुरु जनों की प्रेरणा से संभव करने का प्रयास रहता है।

जीवन संग्राम है, हमें रोज़ परिस्थितियों से लड़ना है, स्वयं से, स्वयं की असीमित संभावनाओं से लड़ना है, यह सिर्फ़ हमें एक गुरु ही सिखा सकता है। गुरु का स्थान कोई भी , कभी भी नहीं ले सकता

ईश्वर सभी गुरु जनों को अच्छी सेहत प्रदान करे, सभी के मान प्रतिष्ठा में वृद्धि करे।

जय गुरुदेव ❤️

Saturday, November 28, 2020

नए रास्ते ईजाद करने में माहिर शायरा : रेणु नय्यर

 अल्बर्ट आइंस्टीन, स्टीव जॉब्स, बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग, सरोजिनी नायडू, मदर टेरेसा, अमृता प्रीतम, दीपा मेहता, कल्पना चावला, ये चंद नाम हैं जिन्होंने अपने नज़रिए से दुनियां को और भी अधिक खूबसूरत बना दिया, हमारे बीच ऐसा ही एक और नाम है आदरणीय रेणु नय्यर जी का, जिन्होंने ना सिर्फ़ ऊर्दू गज़लों की दुनियां में एक आला मुकाम हासिल किया, बल्कि अपनी नई सोच से कई नई लड़कियों, बच्चियों, महिलाओं के लिखने और मंच पर पहुंचने के सपने को और भी सशक्त स्वरूप प्रदान किया है।


अक्सर दुनियां में लोग पहले , नई चीज़, बदलाव का विरोध करते हैं,बाद में सब उसी को अपनाने लग जाते हैं। छायावाद की शुरुआत भी जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा जी ने की,और अंततः छायावाद के प्रमुख स्तंभ बन गए।

जैसे देश में कंप्यूटर आने का और आधुनिक मशीनों का विरोध हुआ और फिर सभी को जब उनकी अहमियत पता चली तो सभी ने इसे अज़माया और अपनाया, वैसे ही जैसे नये विचार सुकरात और कार्ल मार्क्स ने दिए।  रेणु नय्यर जी यकीनन अदब और सुखनवरी की दुनियां में अपनी नई सोच और नये नज़रिए के लिए जानी जाती हैं और इस बार तो सोने पे सुहागा ये है की आपने अपनी बहर ईजाद की है।

हम कौन हैं, क्या हैं,यह मायने नहीं रखता, मायने रखता है तो सिर्फ़ कि हम कौन सा काम, किस मंशा से कर रहे हैं।

आप भी दशरथ मांझी की तरह एक नया आयाम स्थापित कर रही हैं, आने वाले वक्त में दुनियां आपकी इस बहर को यकीनन आपके नाम से ही जानेगी। आपको आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं, आप यूं ही सफ़लता के नए आयाम स्थापित करती रहें।

पेश ए ख़िदमत है रेणु नय्यर साहिबा की गज़ल


 


तुम जो चुपचाप ख़यालों में आ के बैठ गए 

ख़ुद ब ख़ुद अश्क़ रुमालों में आ के बैठ गए 

تم جو چپ چاپ خیالوں میں آ کے بیٹھ گے 

خود بہ خود اشک رومالوں میں آ کے بیٹھ گئے 


हम ने हर बार इन्हीं से शिफ़ाएँ हासिल कीं

आप के ग़म जो मिसालों में आ के बैठ गए 

ہم نے ہر بار انہیں سے شفأیں حاصل کیں 

آپ کے غم جو مثالوں میں آ کے بیٹھ گئے 


मुतमईनी तो जवाबों का मुक़द्दर न बनी

रंज कितने ही सवालों में आ के बैठ गए 

مطمئینی تو جوابوں کا مقدّر نہ بنی 

رنج کتنے ہی سوالوں میں آ کے بیٹھ گئے 


लुत्फ़ देने जो लगी थी हमें ये तन्हाई 

हिज्र ख़ुद अपने विसालों में आ के बैठ गए 

لطف دینے جو لگی تھے ہمیں یہ تنہائی 

ہجر خود اپنے وصالوں میں آ کے بیٹھ گئے 


रंग जब से मेरे साये ने अपना बदला है

सब अंधेरे भी उजालों में आ के बैठ गए 

رنگ جب سے میرے سآئے نے اپنا بدلہ ہے 

سب اندھیرے بھی اجالوں میں آ کے بیٹھ گئے 


जिन के हमराह बने थे कभी तुम्हारे कदम 

वो सफ़र पाँव के छालों में आ के बैठ गए 

جن کے ہمراہ بنے تھے کبھی تمھارے قدم 

وہ سفر پاؤں کے چھالوں میں آ کے بیٹھ گئے 


बर-सरे-राह तमाशा हमारा जब भी बना 

आप भी देखने वालों में आ के बैठ गए 

بر سر راہ تماشا ہمارا جب بھی بنا 

آپ بھی دیکھنے والوں میں آ کے بیٹھ گئے


- Renu Nayyar


(Article by Abhishek Tiwari)

Tuesday, September 29, 2020

ना निराश ना हताश, सुखी जीवन का प्रयास

 बहुत दुख देता है सपनों का टूटना और उस से भी बुरा होता है सपनों के साथ - साथ अपने हौसले का टूटना और अपनों का हम से रूठना और उनका हमसे साथ छूटना। कुछ लोगों के सपने जब टूट जाते हैं, उनके अपने उनसे रूठ जाते हैं और उनके हाथ और साथ छूट जाते हैं तो वो अपनी ज़िन्दगी से दूर चले जाते हैं। ज़िन्दगी में उम्मीदों का मरना बहुत ही बुरा होता है, वो वक़्त जहां आप अकेले होते हैं और बार बार यादों के महासागर में गोते लगाते हैं।

आपके हृदय में और मन मस्तिष्क में चलता हुआ अन्तर्द्वन्द आपको चैन से जीने नहीं देता और चैन से मरने भी तो नहीं देता है। परिस्थितियों से हार के, विवश होने वालों को उनकी मंज़िल कभी नहीं मिलती, उनको मिलती है तो सिर्फ़ अकाल मृत्यु और जो अभी विफलताओं, असफलताओं से  निराशा के वक़्त अपनी भावनाओं पे काबू कर लेते हैं, उनकी विजयश्री तो फ़िर निश्चित है।

बहुत ज़रूरी है दुनियां में अपनी भावनाओं पे काबू करना, अपनी इन्द्रियों को जीतना। अपनी खुशियों की चाभी  को दूसरों के हाथों में सौंपने वाले सदैव निराश हताश होते हैं।कभी - कभी आपको अपने स्वप्नों का बलिदान देना पड़ता है क्योंकि सृष्टि ने, आपके लिए शायद उस से भी बड़े स्वप्न देखें हैं। वैसे भी कहते हैं मन का हो तो भला और मन का ना हो तो बहुत ही भला।

अपनी जीत अपनी हार, अपनी खुशियां अपने दुख, अपने जीवन का विष और अपने जीवन का अमृत सब आपके ही हाथ है। ज्ञानी मनुष्य खुशियों की अनुभूति अपने अंतर्मन में अवस्थित ब्रह्मांड में ही ढूंढ़ लेता है, उसको भौतिक सुख की आवशयकता नहीं होती है। वहीं अज्ञानी मृग के समान खुशियों और सुख की कस्तूरी अपने अंदर ढूंढने की बजाय बाहरी दुनियां में ढूंढ़ता है।

औरों के द्वारा निर्धारित सुख - दुःख, सफलता - असफलता के पैमाने के अनुसार वो सिर्फ़ और सिर्फ़ दुखों को ही प्राप्त करता है।

विजय और हार सिर्फ़ एक मनःस्थिति होती है।

आप जो भी कार्य कर  रहे हैं अगर उसको करने से किसी को भी कोई कष्ट होता है तो आप कभी भी सुख को प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आपको सुख भी मिल गया तो वह क्षणभंगुर ही होगा, वहीं सतत् परिश्रम से, कठिन परिश्रम से प्राप्त सुख आपके जीवन में आपको जो सुख और खुशियां देता है, उसकी अनुभूति में आप का जीवन कब व्यतीत हो जाता है आपको पता ही नहीं चलता।

दूसरों को ख़ुश देखना और दुनियां को ख़ुश रखना ही आपके जीवन का आधार होना चाहिए।

युग- काल खंड और ये दुनियां सिर्फ़ उसी को याद रखती है जो त्याग करते हैं। अपनी खुशियों का त्याग, अपने धन का त्याग, अपने क्रोध और अहंकार का त्याग, अपने जीवन का त्याग।

त्याग ही जीवन का आधार होना चाहिए,जो ख़ुशी किसी मायूस, ज़रूरत मंद, अपने या पराए के चेहरे पे हंसी लाने से मिलती है वो ख़ुशी शायद आपको किसी और कार्य करने से नहीं मिल सकती।

#Abhishekism #Abhishektiwariz #अभिषेक 

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Tuesday, August 4, 2020

मुझे क्या फ़र्क पड़ता है

****************मुझे क्या फ़र्क पड़ता है****************
वो बड़ी बेताबी से कभी अपनी घड़ी को देख रहा था और कभी अपने मोबाइल फ़ोन को, देखता भी क्यूं ना, आज उसकी पत्नी उसके दोनों बच्चों के साथ घर जो वापिस आ रही थी।
लॉकडाउन के कारण वो मुंबई में फंस गया था और उसकी पत्नी और बच्चे लखनऊ में। स्पेशल ट्रेन चलाई गई थी जिस ट्रेन से उसकी पत्नी और बच्चे वापिस आ रहे थे।
वो बार बार बेताबी से स्टेशन पर प्लेटफॉर्म पर टहल रहा था, ट्रेन तो सुबह सुबह १० बजे प्लेटफॉर्म पर पहुंचने वाली थी, राइट टाइम पर थी, तो फ़िर अभी तक पहुंची क्यूं नहीं,
अब तो घड़ी में १२ बजने वाले थे, तभी उसकी नज़र प्लेटफॉर्म पर लगे टेलीविज़न स्क्रीन पर गई जिस पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी कि मुंबई आने वाली एक ट्रेन मुंबई से कुछ घंटे पहले अपनी पटरी से उतर गई है, जिसमें कई लोगो की मृत्यु हो गई है और कई लोग घायल हो गए हैं।
अब उसका दिल किसी अनहोनी की आशंका से डरने लगा और थोड़ी ही देर में स्थिति स्पष्ट हो गई की यह वही गाड़ी संख्या है, जिस से उसका परिवार वापिस आ रहा था। आज फ़िर देश के भ्रष्ट तंत्र और लापरवाह सरकारी महकमे की भेंट कई परिवार चढ़ गए थे, वैसे ही जैसे किसी बस ड्राइवर की लापरवाही से, पायलट की लापरवाही से या किसी चालक की लापरवाही से सैकड़ों इंसानी जान,या किसी डॉक्टर, नर्स या अस्पताल के मुलाजिम की वज़ह से मरीजों, नन्हे मासूमों की जान , सरकारी कर्मचारियों, इंजिनियर अधिकारियों की वज़ह से टूटते बांध, पुलिया या सड़क,
या फ़िर भ्रष्ट नेताओं की वजह से एक पूरे देश का भविष्य।
और इसी के साथ वह ज़ोर ज़ोर से रेलवे स्टेशन के प्लेफार्म पर ही दहाड़े मार कर रोने लगा, चीखने चिल्लाने लगा, क्यूं की कल तक उसको भी न्यूज़ में किसी बस, ट्रेन  का एक्सिडेंट देख कर, अस्पताल में मरते मरीजों, बच्चों को देखकर, खुद ख़ुशी करते किसानों को देख कर, दंगों में मारे गए लोगों को देखकर,
किसी और की बहू बेटी के बलात्कार को देखकर,किसी महिला- पुरुष पे होते अत्याचार को देखकर ऐसा ही लगता था कि मुझे क्या फ़र्क पड़ता है,मेरा कोई अपना कहां मरा है।
©Abhishekism

नई शिक्षा नीति

नई शिक्षा नीति
केवल 12वीं क्‍लास में होगा बोर्ड, MPhil होगा बंद, कॉलेज की डिग्री 4 साल की
कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को हरी झंडी दे दी है. 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है.
खास बातें
34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव
10वीं बोर्ड खत्‍म, MPhil भी होगा बंद
मानव संसाधन मंत्रालय अब होगा शिक्षा मंत्रालय
नई दिल्‍ली: कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को हरी झंडी दे दी है. 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है. HRD मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कहा कि ये नीति एक महत्वपूर्ण रास्ता प्रशस्‍त करेगी.  ये नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी. इस नीति पर देश के कोने कोने से राय ली गई है और इसमें सभी वर्गों के लोगों की राय को शामिल किया गया है. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि इतने बडे़ स्तर पर सबकी राय ली गई है
अहम बदलाव 
- नई शिक्षा नीति के तहत अब 5वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा.
- बाकी विषय चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो, एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा
- अब सिर्फ 12वींं में बोर्ड की परीक्षा देनी होगी. जबकि इससे पहले 10वी बोर्ड की परीक्षा देना अनिवार्य होता था, जो अब नहीं होगा.
- 9वींं से 12वींं क्लास तक सेमेस्टर में परीक्षा होगी. स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा
-वहीं कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल की होगी. यानि कि ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्‍लोमा, तीसरे साल में डिग्री मिलेगी. 
- 3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है. वहीं हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी. 4 साल की डिग्री करने वाले स्‍टूडेंट्स एक साल में  MA कर सकेंगे. 
- अब स्‍टूडेंट्स को  MPhil नहीं करना होगा. बल्कि MA के छात्र अब सीधे PHD कर सकेंगे.
10वीं में नहीं होगा बोर्ड एग्‍जाम, पढ़ें नई शिक्षा नीति की 10 बड़ी बातें
इतने बड़े पैमाने पर जुटाई गई थी राय
इस शिक्षा नीति के लिए कितने बड़े स्तर पर रायशुमारी की गई थी, इसका अंदाजा इन आंकड़ों से सहज ही लगाया जा सकता है. इसके लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6,600 ब्लॉक्स, 676 जिलों से सलाह ली गई थी. 
स्‍टूडेंट्स बीच में कर सकेंगे दूसरे कोर्स 
हायर एजुकेशन में 2035 तक ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो 50 फीसदी हो जाएगा. वहीं नई शिक्षा नीति के तहत कोई छात्र एक कोर्स के बीच में अगर कोई दूसरा कोर्स करना चाहे तो पहले कोर्स से सीमित समय के लिए ब्रेक लेकर वो दूसरा कोर्स कर सकता है. 
हायर एजुकेशन में भी कई सुधार किए गए हैं. सुधारों में ग्रेडेड अकेडमिक, ऐडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल हैं. इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएंगे. वर्चुअल लैब्स विकसित किए जाएंगे. एक नैशनल एजुकेशनल साइंटफिक फोरम (NETF) शुरू किया जाएगा. बता दें कि देश में 45 हजार कॉलेज हैं.
मोदी सरकार ने घोषित की 21वीं सदी की नई शिक्षा नीति, MHRD का बदला नाम
सरकारी, निजी, डीम्‍ड सभी संस्‍थानों के लिए होंगे समान नियम 
हायर एजुकेशन सेक्रटरी अमित खरे ने बताया, ' नए सुधारों में टेक्नॉलॉजी और ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिया गया है. अभी हमारे यहां डीम्ड यूनविर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं. नई एजुकेशन पॉलिसी के तहत सभी के लिए नियम समान हों

Sunday, August 2, 2020

नपुंसक

********************नपुंसक************************

सड़क के बीचो बीच भीड़ लगी हुई थी, जोर से आवाज आ रही थी मारो मारो और जोर से मारो और  मैं ट्रैफिक जाम में फंसी अपनी कार से उतर के कब इस भीड़ का हिस्सा बन गया, कब इस भीड़ में घुल मिल गया मुझे भी पता नहीं चला।
मेरे कदम उस भीड़ के घेरे को चीरते हुए आगे बढ़ने लगे, तमाशबीन लोगों की भीड़ से मारो मारो की आवाज और तेज होने लगी, मैं करीब पहुंचा तो देखा एक आदमी अपने बगल में दो रोटी छुपाए रो रहा है ,भीड़ उसे मार रही है वह बार बार सिर्फ इतना ही कह रहा था कि साहब  मैं चोर नहीं हूं लॉकडाउन में  काम धंधा चौपट हो गया है,भूख से घर में  मेरे माता पिता, पत्नी ,छोटी बेटी मर चुकी है उनकी लाशें सड़ रही हैं, मैं चोर नहीं हूं साहब अपनी बड़ी बेटी का भूख से तड़पता और मरना मुझसे देखा नहीं जा रहा था और आज लॉकडाउन खुला था और मैंने घर से बाहर  आकर ढाबे के कूड़ेदान से दो रोटी ही उठाई थी कि यह लोग मुझे चोर चोर कह कर मार रहे हैं, लॉक डाउन में काम धंधा सब तबाह हो गया साहब मैं चोर नहीं हूं साहब, बड़ी उम्मीद से उसने मेरी ओर देखा कि तभी भीड़ में से किसी शख्स ने एक पत्थर जोर से उसके सिर पर दे मारा और उसकी आवाज एक चीख में बदल कर गुम हो गई। तभी मैंने देखा कि उसकी आत्मा भीड़ को देखकर अठहास कर रही है, कह रही है नपुंसक हो तुम सब, भ्रष्ट नेता, पुलिसकर्मी, सरकारी अधिकारी और कर्मचारीयों, गुंडों, लाखों करोड़ों के ठगों  के सामने तो तुम्हारी आवाज नहीं निकलती ।
पर गरीब, मासूम, असहाय, लाचार लोगों के सामने तुम शेर बन जाते हो। किसी लड़की का बलात्कार होते देखते हो या दिनदहाड़े लूटपाट तब तो खामोश हो जाते हो और आज सिर्फ दो रोटी के लिए तुम सब ने मेरा कत्ल कर दिया। और मैं खामोश वापस अपनी कार की ओर मुड़ता हुआ यही सोच रहा था कि मैं भी एक नपुंसक हूं जो एक गरीब लाचार मासूम की जान नहीं बचा पाया, और यह दो रोटी शायद वह नहीं उठाता तो कुछ दिन और शायद जिंदा रह जाता, आज दो रोटी की वजह से उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
और मेरी आंखो से बार बार आंसू निकल रहे थे, अपने असफल होने के कारण, सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण और भीड़- तंत्र के कारण।
©Abhishekism

Tuesday, July 7, 2020


शायर वो है जो अपनी शायरी से सभी का दिल को चुरा ले, शायरी का जादू हर दिल पे चला डाले।

1 सितंबर 1958 को चांदपुर बिजनौर उत्तर प्रदेश (भारत) में जनाब हस्मतुल्लाह जी के घर जन्में  शकील जमाली साहब आज पूरी अदब की दुनियां के शकील जमाली साहब बन चुके हैं, या यूं कहा जाये की हिंदुस्तान का बेटा पूरी अदब की दुनियां का सबसे पसंदीदा शायरों की फ़ेहरिस्त का एक बुलंद नाम बन चुका है, एक बहुत ही बड़ा हस्ताक्षर बन चुका है तो यह बात सौ फ़ीसदी सच ही साबित होगी।
जश्न ए रेख़्ता के स्टेज  और समय समय पर कई अन्य अदबी महफिलों को रौशन करती एक शख्सियत जो अदब की दुनियां ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में अपनी बेहतरीन मुस्कान, पाक दिल और साफ़गोई के लिए ही जाने जाते हैं, मैं अक्सर कहता हूं शकील जमाली साहब से की अगर इस दुनियां की सबसे बेहतरीन मुस्कुराहट वाले लोगों की फ़ेहरिस्त बनाई जाएगी तो आप का नाम यक़ीनन अव्वल दर्जे पर आएगा और आये भी क्यों ना, जादू ही ऐसा है आपकी मुस्कुराहट और शख्सियत का।आप की जिंदादिली की मिसाल पूरी दुनियां देती है, एक बार जो भी आप से जुड़ा,बस आपका मुरीद हो कर रह गया।
शकील जमाली साहब अपने अशआर को जिन अल्फ़ाज़ में पिरोते हैं उनके मायने गज़ब की गहराई रखते हैं।आपकी सादगी में जो बात है, वह दुनियां में अक्सर बहुत कम लोगों में मिलती है, जितनी पाक रूह, उतने ही बेमिसाल इंसान।
यक़ीनन आप अपने आप में  अदब और सुखनवरी की यूनिवर्सिटी, विश्व विद्यालय हैं। अदब की दुनियां में अक्सर लोग अपनी बात करते हैं, वहीं एक आप हैं जो हमेशा ही बड़े शायरों की बात करते हैं, अपने से बड़ों को याद करते हैं, अपने समकालीन शायरों और अपने से उम्र में कम शायरों की इज्ज़त अफजाई करते हैं।
2019 में ज़ी टीवी सलाम पर आपने ऊर्दू शायरों की शख्सियत और उनकी शायरी की बात की  और जिसमें लगभग 80-90 कड़ियों में क्लासिक  के शायरों, शायरी और सुखनवरी के बड़े दस्तख़त जैसे कि मीर, गालिब, मौमिन, ज़ौक, दाग़, आतिश, नासिख़, फ़ैज़ ,जोश, बाशिर बद्र , इरफ़ान सिद्दीकी, नासिर काज़मी, अहमद जावेद, परवीन शाकिर जी, ज़फ़र इक़बाल, एहमद मुश्ताक, नूर नारवी, हसरत, फ़ानी, यगाना और कई अन्य उर्दू  के बड़े शायरों  की ज़िन्दगी और शायरी की बात की गई थी।
आप हमेशा बड़े शायरों, पुराने शायरों के साथ साथ आज के दौर के जो बेहतरीन शायर हैं, उन्हें पढ़ने के लिए सभी को प्रोत्साहित करते हैं।
आप अक्सर कहते हैं कि शायर वही याद रहता है जो ज़मानों और वक़्त से ऊपर की बात करता है. कमज़ोर शायरी ही जुमलों की मोहताज होती है। किसी भी क़ामयाब महफ़िल के लिए मेज़बान,शायर और सामईन बराबरी के हक़दार होते हैं।
क्या लिखना है, क्या नहीं लिखना है, कैसे आगे बढ़ना है,आप बेहद सादगी और बेहतरीन तरीक़े से सभी नौजवानों को समझाते हैं। वक़्त के साथ चलना, टेक्नोलोजी के साथ चलने पर भी आप ज़ोर देते हैं। लगातार पढ़ना और पढ़ते रहने पर आपका खासा ज़ोर रहता है। जब भी ख़ाली वक़्त मिलता है आपको, उसमें भी आप पढ़ते ही रहते हैं।
आपकी लिखी गजलों की धूम से बॉलीवुड भी अछूता नहीं रहा, वीनस कैसेट्स के लिए अतलाफ राजा जी ने आपकी अनगिनत गजलें गाई हैं।
शिक्षा क्षेत्र में भी आपने अपने आप को अव्वल ही साबित किया, आपने पॉलिटिकल साइंस में एम.ए किया है।
आपकी 3 किताबें अभी तक प्रकाशित हो चुकी हैं, जो हैं :-
धूप तेज़ है,कटोरे में चांद, कागज़ पर आसमान । दुनियां में उर्दू में गज़लों की शायद ही कोई ऐसी पत्रिका हो जिसमें आपकी गज़ल ना छपी हो, शायद ही हिंदुस्तान का कोई बड़ा अदबी मंच हो या शहर हो जहां आपकी गजलों ने धूम ना मचाई हो।
हिंदी और उर्दू भाषा पर तुलना का सवाल आता है  तब शकील जमाली साहब कहते हैं, हिंदी और उर्दू एक दूसरे की पूरक भाषाएं हैं, जिस तरह  तितली और फूल को अलग करके नहीं देखा जा सकता। उसी तरह हिंदी और उर्दू को भी अलग नहीं किया जा सकता। हिंदी भाषा ने सबको एक सूत्र में पिरोया है।

रिश्तों की बात करते हुए आप कहते हैं, सबसे पहले दिल के खाली पन को भरना जरूरी है, क्यों कि पैसा सारी उम्र कमाया जा सकता है। हमें मूल्यों की फिक्र करते हुए रिश्तों की कद्र करने की जरूरत है और यही सोच आपकी गजलों, शेर ओ शायरी में भी नज़र आती है।
चांदपुर, बिजनौर, उत्तर प्रदेश (भारत ) का नाम यक़ीनन आप के दम से बुलंद है, रौशन है और यक़ीनन आप से सभी उभरते शायर, और सुखनवरी में दिलचस्पी रखने वालों को जितना सिखने मिलता है उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए वह कम ही होगी।
इंटरनेट, यूट्यूब पे अगर किसी शायर को सबसे ज्यादा मोहब्बत हासिल है,तो यक़ीनन यहां भी आप ही बाज़ी मारते दिखते हैं।
सुखनवरी को, शायरी को, अदब को सबसे पहले पायदान पर रखने वाले आप और अपने जज़्बे को लाखों सलाम हैं।
सभी से मोहब्बत करने वाले, सभी को बराबर देखने वाले, शकील जमाली साहब वाकई में शान ए हिंदुस्तान हैं।
©Abhishek Tiwari







शकील जमाली साहब की चंद गजलें और तस्वीरें
*
अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए
©शकील जमाली
अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए
अब मिरे पास ख़ज़ाना है लुटाने के लिए
ऐसी दफ़अ' न लगा जिस में ज़मानत मिल जाए
मेरे किरदार को चुन अपने निशाने के लिए
किन ज़मीनों पे उतारोगे अब इमदाद का क़हर
कौन सा शहर उजाड़ोगे बसाने के लिए
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए
हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
मैं उसे ढूँढ रहा हूँ ये बताने के लिए
नफ़रतें बेचने वालों की भी मजबूरी है
माल तो चाहिए दूकान चलाने के लिए
जी तो कहता है कि बिस्तर से न उतरूँ कई रोज़
घर में सामान तो हो बैठ के खाने के लिए
*
सफ़र से लौट जाना चाहता है
शकील जमाली
सफ़र से लौट जाना चाहता है
परिंदा आशियाना चाहता है
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है
उसे रिश्ते थमा देती है दुनिया
जो दो पैसे कमाना चाहता है
यहाँ साँसों के लाले पड़ रहे हैं
वो पागल ज़हर खाना चाहता है
जिसे भी डूबना हो डूब जाए
समुंदर सूख जाना चाहता है
हमारा हक़ दबा रक्खा है जिस ने
सुना है हज को जाना चाहता है
*
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
शकील जमाली
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था
चलो हमी सही सारी बुराइयों का सबब
मगर तुझे भी ज़रा सा निभाना चाहिए था
अगर नसीब में तारीकियाँ ही लिक्खी थीं
तो फिर चराग़ हवा में जलाना चाहिए था
मोहब्बतों को छुपाते हो बुज़दिलों की तरह
ये इश्तिहार गली में लगाना चाहिए था
जहाँ उसूल ख़ता में शुमार होते हों
वहाँ वक़ार नहीं सर बचाना चाहिए था
लगा के बैठ गए दिल को रोग चाहत का
ये उम्र वो थी कि खाना कमाना चाहिए था
*
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
शकील जमाली
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
मियाँ ले लो जो क़ीमत आ रही है
मैं उस से इतने वा'दे कर चुका हूँ
मुझे इस बार ग़ैरत आ रही है
न जाने मुझ में क्या देखा है उस ने
मुझे उस पर मोहब्बत आ रही है
बदलता जा रहा है झूट सच में
कहानी में सदाक़त आ रही है
मिरा झगड़ा ज़माने से नहीं है
मिरे आड़े मोहब्बत आ रही है
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
मुझे उस की उदासी ने बताया
बिछड़ जाने की साअ'त आ रही है
बड़ों के दरमियाँ बैठा हुआ हूँ
नसीहत पर नसीहत आ रही है

Wednesday, July 1, 2020

आधुनिक भारत के सबसे पसंदीदा शायरों में से एक - वरूण आनंद

दोस्तों पोएटिक आत्मा लाया है अब हर हफ़्ते एक लेखक, कवि, शायर का परिचय, इस कड़ी में सबसे पहले शायर जिन्हें हम ले कर आएं हैं, उनके बारे में स्वयं पढ़ें आप :-

आसान नहीं होता दोस्तो किसी के जीवन का आनंद बन जाना और उस से भी मुश्किल होता है एक ऐसा आनंद बन जाना, जो की ना सिर्फ़ एक परिवार का मान सम्मान है, अपितु पूरे पंजाब प्रांत और भारतवर्ष को जिस पे गर्व है।
वह ना सिर्फ़ एक दिये की तरह जलता है, परन्तु वह ख़ुद जल के पूरी दुनियां को सूरज की तरह रौशन करता है। यहां बात हो रही है आज के दौर के सबसे ख़ास शायर की; जो अव्वल फ़ेहरिस्त के शायरों में से एक चमकता नाम है, जिनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है; वह हैं हर दिल अजीज वरूण आनंद साहब । आज के दौर में हर एक नया उभरता लेखक, कवि या शायर अगर किसी शायर की तरह बनना चाहता है तो यकीनन वरूण आनन्द साहब के जैसा बनना चाहता है और बने भी क्यों ना, कठोर परिश्रम, सच्ची लगन, जिंदादिली, ईमानदारी, मोहब्बत और इंसानियत का दूसरा नाम है वरूण आनंद।

भारत के सूबा ए पंजाब  के लुधियाना ज़िले से ताल्लुक़ रखने वाले
वरूण आनंद साहब एकदम सहज प्रवृत्ति के हैं। आज देश के लगभग सभी मंचों पे आप अपनी शेर ओ शायरी का जादू चला चुके हैं और आगे भी चलाते रहेंगे।आप जिस भी मंच पर विराजमान होते हैं, उस मंच की शोभा स्वतः ही बढ़ जाती है। शायद ही कोई ऐसा शख़्स होगा,जिसने आपकी गजलें सुनी हो और आपके जादू से अछूता रहा हो। आपकी शायरी का जादू भी कुछ ऐसा है कि आप के चाहने वालों की फ़ेहरिस्त दिन - प्रतिदिन और भी बड़ी होती जा रही है, बॉलीवुड से ले कर देश विदेश में आप के नाम की दीवानगी देखते ही बनती है।


आपका नाम अपने आप में किसी भी मुशायरे और कवि सम्मेलन की सफ़लता की कुंजी है। आपके कलाम और क़लम का जादू भी कुछ ऐसा है कि भीड़ सिर्फ़ आपका नाम सुन के आने लगती है।यह एक दिन की मेहनत का नतीजा नहीं है, इसमें कई वर्षों की तपस्या है, आपकी मेहनत और लगन है,आपकी और आपके परिवार की असंख्य कुर्बानियां शामिल हैं, आपके गुरुजनों, प्रियजनों, चाहने वालों और कई अन्य लोगों की दुआओं का असर है इसमें।
जब दुनियां के अधिकतर लोग आराम फरमाने में व्यस्त रहते हैं तब आप रोज़ी रोटी कमाने के बाद, दिन भर की मरूफियत में अपनी सुखनवरी के लिए जहन में ग़ज़लों, शेर ओ शायरी पर काम कर रहे होते हैं। ख़ाली वक़्त में आप दूसरे शायरों को पढ़ने और लिखने में मसरूफ़ होते हैं। जहां इस दौर में हर एक में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी है, वहीं आप नये शायरों को आगे बढ़ाने और सुखनवरी की बारीकियां समझाने में मसरूफ होते हैं।
आप दूसरे कई लोगों के लिए मिसाल हैं की कैसे औरों को आगे बढ़ाने के साथ साथ ख़ुद भी आगे बढ़ा जा सकता है।
अपने पारिवारिक मूल्यों का, जीवन मूल्यों का पूरी ईमानदारी के साथ निर्वहन करने वाले आप, यक़ीनन आधुनिक युग के शायरों में एक बेहतरीन नाम हैं।

दोस्तों Poetic Atma परिवार Varun anand जी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है,और वरूण आनंद जी के चाहने वालों के लिए उनकी लिखी गजलें पेश करता है। सभी गजलें इंटरनेट और वरूण आनंद जी के फ़ेसबुक वॉल से ढूंढ के इकठ्ठी की गई हैं, ताकि वरूण आनंद जी को चाहने वाले आपकी बेहतरीन गजलों, शेर ओ शायरी को पढ़ सकें।
इसमें वरूण आनंद साहब के शुरुआती दौर की कई रचनाएं हैं,जो उनके दिन प्रतिदिन ऊंचे होते ग्राफ को दर्शाती है।
अगर इस लेख में आपको कोई त्रुटि दिखे तो कृप्या क्षमा करें।
© अभिषेक तिवारी (पोएटिक आत्मा)
*

अपनी आंखों में भर कर ले जाने हैं
मुझको उसके आंसू काम में लाने है

देखो हम कोई वेहसी नहीं, दीवाने हैं
तुमसे बटन खुलवाने नहीं लगवाने है

हम तुम एक दूजे की सीढ़ी है जाना
बाकी दुनिया तो सांपों के खाने हैं

पाक़ीज़ा चीजों को पाक़ीज़ा लिखो
मत लिखो उसकी आंखें मयखाने हैं
*

तेरी निगाह-ए-नाज से छूटे हुए दरख़्त
मर जाएं क्या करें बता सूखे हुए दरख़्त

हैरत हैं पेड़ नीम के देने लगे हैं आम
पगला गए हैं आपके चूमे हुए दरख़्त
*
तेरे पीछे होगी दुनिया, पागल बन
क्या बोला मैंने कुछ समझा?.. पागल बन
सेहरा में भी ढूंढ ले दरिया, पागल बन
वरना मर जाएगा प्यासा, पागल बन
आधा दाना आधा पागल, नहीं नहीं नहीं
उसको पाना है तो पूरा पागल बन
दानाई दिखलाने से कुछ हासिल नही
पागल खाना है ये दुनिया, पागल बन
देखें तुझको लोग तो पागल हो जाएँ
इतना उम्दा इतना आला पागल बन
लोगों से डर लगता है? तो घर में बैठ
जिगरा है तो मेरे जैसा पागल बन
*
चाँद, सितारे, फूल, परिंदे ,शाम ,सवेरा एक तरफ़
सारी दुनिया उसका चर्बा उसका चेहरा एक तरफ़

वो लड़ कर भी सो जाए तो उसका माथा चूमूँ मैं
उससे मुहब्बत एक तरफ़ है उससे झगड़ा एक तरफ़

जिस शय पर वो उँगली रख दे उसको वो दिलवानी है
उसकी ख़ुशियाँ सबसे अव्वल सस्ता महंगा एक तरफ़

ज़ख़्मों पर मरहम लगवाओ लेकिन उसके हाथों से
चारा-साज़ी एक तरफ़ है उसका छूना एक तरफ़

सारी दुनिया जो भी बोले सब कुछ शोर-शराबा है
सबका कहना एक तरफ़ है उसका कहना एक तरफ़

उसने सारी दुनिया माँगी मैने उसको माँगा है
उसके सपने एक तरफ़ हैं मेरा सपना एक तरफ़
*

झीलें क्या हैं?
उसकी आँखें

उम्दा क्या है?
उसका चेहरा

ख़ुश्बू क्या है?
उसकी साँसें

खुशियाँ क्या हैं?
उसका होना

तो ग़म क्या है?
उससे जुदाई

सावन क्या है?
उसका रोना

सर्दी क्या है?
उसकी उदासी

गर्मी क्या है?
उसका ग़ुस्सा

और बहारें?
उसका हँसना

मीठा क्या है?
उसकी बातें

कड़वा क्या है?
मेरी बातें

क्या पढ़ना है?
उसका लिक्खा

क्या सुनना है?
उसकी ग़ज़लें

लब की ख़्वाहिश?
उसका माथा

ज़ख़्म की ख़्वाहिश?
उसका छूना

दिल की ख़्वाहिश?
उसको पाना

दुनिया क्या है?
इक जंगल है

और तुम क्या हो?
पेड़ समझ लो

और वो क्या है?
इक राही है

क्या सोचा है?
उस से मुहब्बत

क्या करते हो?
उससे मुहब्बत

इसके अलावा?
उससे मुहब्बत

मतलब पेशा?
उससे मुहब्बत

उससे मुहब्बत, उससे मुहब्बत, उससे मुहब्बत
*
यूँ अपनी प्यास की ख़ुद ही कहानी लिख रहे थे हम
सुलगती रेत पे उँगली से पानी लिख रहे थे हम

मियाँ बस मौत ही सच है वहाँ ये लिख गया कोई
जहाँ पर ज़िंदगानी ज़िंदगानी लिख रहे थे हम

मिले तुझ से तो दुनिया को सुहानी लिख दिया हम ने
वगर्ना कब से उस को बे-मआ'नी लिख रहे थे हम

हमीं पे गिर पड़ी कल रात वो दीवार रो रो कर
कि जिस पे अपने माज़ी की कहानी लिख रहे थे हम
*
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
तुम्हें किस ने कहा है हम बरी तक़दीर वाले हैं

वो जिन को ख़ुद से मतलब है सियासी काम देखें वो
हमारे साथ आएँ जो पराई पैर वाले हैं

वो जिन के पाँव थे आज़ाद पीछे रह गए हैं वो
बहुत आगे निकल आएँ हैं जो ज़ंजीर वाले हैं

हैं खोटी निय्यतें जिन की वो कुछ भी पा नहीं सकते
निशाने क्या लगें उन के जो टेढ़े तीर वाले हैं

तुम्हारी यादें पत्थर बाज़ियाँ करती हैं सीने में
हमारे हाल भी अब हू-ब-हू कश्मीर वाले हैं
*
ये शोख़ियाँ ये जवानी कहाँ से लाएँ हम
तुम्हारे हुस्न का सानी कहाँ से लाएँ हम

मोहब्बतें वो पुरानी कहाँ से लाएँ हम
रुकी नदी में रवानी कहाँ से लाएँ हम

हमारी आँख है पैवस्त एक सहरा में
अब ऐसी आँख में पानी कहाँ से लाएँ हम

हर एक लफ़्ज़ के मा'नी तलाशते हो तुम
हर एक लफ़्ज़ का मा'नी कहाँ से लाएँ हम

चलो बता दें ज़माने को अपने बारे में
कि रोज़ झूटी कहानी कहाँ से लाएँ हम
*
ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है
वक़ार ख़ुद नहीं बनता बनाया जाता है

कभी कभी जो परिंदे भी अन-सुना कर दें
तो हाल दिल का शजर को सुनाया जाता है

हमारी प्यास को ज़ंजीर बाँधी जाती है
तुम्हारे वास्ते दरिया बहाया जाता है

नवाज़ता है वो जब भी अज़ीज़ों को अपने
तो सब से बा'द में हम को बुलाया जाता है

हमीं तलाश के देते हैं रास्ता सब को
हमीं को बा'द में रास्ता दिखाया जाता है
*
मरहम के नहीं हैं ये तरफ़-दार नमक के
निकले हैं मिरे ज़ख़्म तलबगार नमक के

आया कोई सैलाब कहानी में अचानक
और घुल गए पानी में वो किरदार नमक के

दोनों ही किनारों पे थी बीमारों की मज्लिस
इस पार थे मीठे के तो उस पार नमक के

उस ने ही दिए ज़ख़्म ये गर्दन पे हमारी
फिर उस ने ही पहनाए हमें हार नमक के

कहती थी ग़ज़ल मुझ को है मरहम की ज़रूरत
और देते रहे सब उसे अशआ'र नमक के

जिस सम्त मिला करती थीं ज़ख़्मों की दवाएँ
सुनते हैं कि अब हैं वहाँ बाज़ार नमक के
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©वरुण आनंद

Saturday, June 13, 2020

कोविड-19 संक्रमण से उबरने के पांच दिन बाद वरिष्ठ उर्दू शायर आनंद मोहन जुत्शी उर्फ गुलजार देहलवी का शुक्रवार दोपहर को निधन हो गया.

वह एक माह बाद आयु के 94 वर्ष पूरा करने वाले थे. उनका निधन नोएडा स्थित उनके आवास पर हुआ.

बीते सात जून को उनकी कोरोनावायरस की जांच रिपोर्ट दोबारा निगेटिव आयी थी जिसके बाद उन्हें घर वापस लाया गया.
उनके बेटे अनूप जुत्शी ने कहा, ‘सात जून को उनकी कोरोनावायरस की जांच रिपोर्ट दोबारा निगेटिव आयी जिसके बाद हम उन्हें घर वापस लाये. आज लगभग दोपहर ढाई बजे हमने खाना खाया और उसके बाद उनका निधन हो गया.’

उन्होंने कहा, ‘वह काफी बूढ़े थे और संक्रमण के कारण काफी कमजोर भी हो गए थे. डॉक्टरों का मानना है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा होगा.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर लिखा, ‘दिल्ली के मशहूर शायर आनंद मोहन ‘गुलज़ार देहलवी’ जी नहीं रहे. 93 उम्र में भी वो उर्दू अकादमी के हर मुशायरे में जोश और प्रेम से आते रहे. दिल्ली की गंगा जमुनी तहज़ीब की हाज़िर मिसाल को नमन.


शहर में रोज़ उड़ा कर मेरे मरने की ख़बर
जश्न वो रोज़ रक़ीबों का मना देते हैं
स्वतंत्रता सेनानी और जाने-माने ‘इंकलाबी’ कवि देहलवी को कोरोनावायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद एक जून को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

गुलजार देहलवी को भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया है. 2009 में उन्हें मीर तकी मीर पुरस्कार भी दिया गया था. 2011 में उनकी रचना कुलियात-ए-गुल्ज़ार प्रकाशित हुई थी.

पुरानी दिल्ली के गली कश्मीरियां में 1926 में जन्मे देहलवी भारत सरकार द्वारा 1975 में प्रकाशित पहली उर्दू विज्ञान पत्रिका ‘साइंस की दुनिया’ के संपादक भी रह चुके हैं.
गुलज़ार साहब के निधन पर उर्दू अदब के मक़बूल शायर वसीम बरेलवी और मंसूर उस्मानी ने अपने अनुभव साझा किए-

- उर्दू अदब और हिंदुस्तान की साझा संस्कृति का एक वाहक आज रुख़्सत हो गया। मेरी करीबी  उनसे दिल्ली के हिंदू कॉलेज में नौकरी के दिनों बढ़ी थी। पुरानी दिल्ली के इलाकों में उनके  साथ पूरा एक क़ाफ़िला रहता था। शायरी के मंच पर मेरे संघर्ष के दिनों में मुझे उनका बहुत  साथ मिला। हमेशा हौसला अफ़जाई की। उनका जाना केवल एक भाषा ही नहीं, बल्कि हमारी  तहजीबी विरासत का बड़ा नुकसान है। दिल्ली की रवायतों को जीने वाले शायर का नाम था  गुलजार देहलवी।
- प्रो. वसीम बरेलवी, शायर

- जिगर मुरादाबादी से उनके अच्छे ताल्लुकत थे। मुरादाबाद में अपनी जवानी के दिनों से करीब  65 वर्ष की आयु तक तो यहां के मुशायरों में खूब आना हुआ। उसके बाद उम्र के तकाजे को देखते  हुए कुछ कम हुआ। 2018 में मुरादाबाद में आयोजित जिगर फेस्ट में वह शिरकत करने आए थे। उस  वक्त जिगर साहब के उनके नाम लिखे खतों को उन्होंने यहां दिखाया था। एक जीती-जागती  पाठशाला ने आज हमसे विदाई ले ली। मुझे उनका बहुत आशीर्वाद मिला।
- मंसूर उस्मानी, प्रसिद्ध शायर